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सीबीडीटी ने आयकर निकासी प्रमाणपत्र (आईटीसीसी) के संबंध में स्पष्टीकरण जारी किया..यह गलत सूचना दी जा रही है कि सभी भारतीय नागरिकों को देश छोड़ने से पहले आयकर निकासी प्रमाणपत्र प्राप्त करना करना होगा.


PIB-20 Aug : आयकर अधिनियम, 1961 ('अधिनियम') की धारा 230 (1ए) भारत में निवास करने वाले व्यक्तियों द्वारा, कुछ परिस्थितियों में, कर निकासी प्रमाणपत्र प्राप्त करने से संबंधित है। उक्त प्रावधान, जैसा कि यह है, वित्त अधिनियम, 2003 के माध्यम से 1.6.2003 से क़ानून में आया। वित्त (सं. 2) अधिनियम, 2024 ने अधिनियम की धारा 230 (1ए) में केवल एक संशोधन किया है, जिसके माध्यम से, काला धन (अघोषित विदेशी आय और संपत्ति) और कर अधिनियम, 2015 ('काला धन अधिनियम') का संदर्भ उक्त धारा में डाला गया है। यह प्रविष्टि आयकर अधिनियम, 1961 और आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 230 (1ए) के प्रयोजन के लिए प्रत्यक्ष करों से निपटने वाले अन्य अधिनियमों के तहत देनदारियों के समान ही काला धन अधिनियम के तहत देनदारियों को भी कवर करने के लिए की गई है।

ऐसा प्रतीत होता है कि संशोधन के बारे में गलत जानकारी दी जा रही है, जो संशोधन की गलत व्याख्या से उत्पन्न हुई है। यह गलत सूचना दी जा रही है कि सभी भारतीय नागरिकों को देश छोड़ने से पहले आयकर निकासी प्रमाणपत्र (आईटीसीसी) प्राप्त करना होगा। यह स्थिति तथ्यात्मक रूप से गलत है।

अधिनियम की धारा 230 के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति को कर निकासी प्रमाणपत्र प्राप्त करना आवश्यक नहीं है। केवल कुछ व्यक्ति, जिनके संबंध में ऐसी परिस्थितियाँ मौजूद हैं जो कर निकासी प्रमाणपत्र प्राप्त करना आवश्यक बनाती हैं, उन्हें उक्त प्रमाणपत्र प्राप्त करना आवश्यक है। यह स्थिति 2003 से क़ानून में है और वित्त (सं. 2) अधिनियम, 2024 के संशोधनों के बाद भी अपरिवर्तित बनी हुई है।

 इस संदर्भ में, सीबीडीटी ने अपने निर्देश संख्या 1/2004, दिनांक 05.02.2004 के तहत निर्दिष्ट किया है कि अधिनियम की धारा 230(1ए) के अंतर्गत कर निकासी प्रमाणपत्र भारत में निवास करने वाले व्यक्तियों द्वारा केवल निम्नलिखित परिस्थितियों में प्राप्त करना आवश्यक हो सकता है:

  1. जहां व्यक्ति गंभीर वित्तीय अनियमितताओं में लिप्त है और आयकर अधिनियम या संपत्ति कर अधिनियम के तहत मामलों की जांच में उसकी उपस्थिति आवश्यक है और यह संभावना है कि उसके खिलाफ कर की मांग उठाई जाएगी, या

  2. जहां व्यक्ति पर 10 लाख रुपये से अधिक का प्रत्यक्ष कर बकाया हो, जिस पर किसी प्राधिकारी द्वारा रोक नहीं लगाई गई हो।

इसके अलावा, किसी व्यक्ति को कर निकासी प्रमाणपत्र प्राप्त करने के लिए केवल कारण दर्ज करने तथा प्रधान मुख्य आयकर आयुक्त या मुख्य आयकर आयुक्त से अनुमोदन प्राप्त करने के बाद ही कहा जा सकता है।

इसके मद्देनजर, यह दोहराया जाता है कि अधिनियम की धारा 230(1ए) के तहत आईटीसीसी की जरूरत भारत में रहने वाले निवासियों को केवल दुर्लभ मामलों में ही होती है, जैसे (ए) जहां कोई व्यक्ति गंभीर वित्तीय अनियमितताओं में शामिल हो या (बी) जहां 10 लाख रुपये से अधिक की कर मांग लंबित हो, जिस पर किसी प्राधिकरण द्वारा रोक नहीं लगाई गई हो।



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