PIB 1 Aug: भारत सरकार (जीओआई) ने गंगा नदी और उसकी सहायक नदियों के पुनरुद्धार के लिए साल 2014-15 में नमामि गंगे कार्यक्रम (एनजीपी) शुरू किया था। इसका बजटीय परिव्यय पांच वर्ष यानी मार्च, 2021 तक 20,000 करोड़ रुपये निर्धारित किया गया था। इस कार्यक्रम को 22,500 करोड़ रुपये के बजटीय परिव्यय के साथ मार्च, 2026 तक बढ़ा दिया गया है। इस कार्यक्रम के तहत गंगा नदी की सफाई और पुनरुद्धार के लिए विविध व समग्र कार्य शुरू किए गए हैं। इनमें अपशिष्ट जल उपचार, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, नदी तट प्रबंधन (घाट और श्मशान), ई-प्रवाह सुनिश्चित करना, ग्रामीण स्वच्छता, वनरोपण, जैव विविधता संरक्षण और जन भागीदारी आदि शामिल हैं।
जून, 2024 तक 39,080.70 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से कुल 467 परियोजनाएं शुरू की गई हैं। इनमें से 292 परियोजनाएं पहले ही पूरी होने के साथ परिचालित हो गई हैं। कुल अनुमोदित परियोजनाओं में से 6,2170 मिलियन लीटर प्रतिदिन (एमएलडी) सीवेज उपचार संयंत्र (एसटीपी) क्षमता के निर्माण व पुनर्वास और लगभग 5,282 किलोमीटर सीवरेज नेटवर्क बिछाने के लिए 32,071 करोड़ रुपये की लागत से 200 सीवरेज बुनियादी ढांचा परियोजनाएं शुरू की गई हैं। इनमें से 120 सीवरेज परियोजनाएं पूरी होने के साथ परिचालित हो चुकी हैं। इसके परिणामस्वरूप 3,242 मिलियन लीटर प्रतिदिन एसटीपी क्षमता का निर्माण और पुनर्वास सहित 4,528 किलोमीटर सीवरेज नेटवर्क बिछाया गया है।
गंगा और उसकी सहायक नदियों को प्रदूषण मुक्त व टिकाऊ स्वच्छता प्रदान करने के लिए एनजीपी के तहत राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) द्वारा उठाए गए अन्य कदम और परियोजनाएं निम्नलिखित हैं:
नमामि गंगे कार्यक्रम, सीवेज अवसंरचना परियोजनाओं के तहत निर्धारित जल गुणवत्ता शर्तों को प्राप्त करने के लिए दीर्घावधि में उनका निरंतर परिचालन और रखरखाव सुनिश्चित करने को लेकर उनके परिचालन व रखरखाव संविदा शर्तों को 5 साल से 15 साल की अवधि की अवधि के साथ मंजूरी प्रदान की गई है।
औद्योगिक प्रदूषण को कम करने के लिए 5 साझा प्रवाह शोधन संयंत्रों (सीईटीपी) – जजमाऊ सीईटीपी (20 एमएलडी), बंथेर सीईटीपी (4.5 एमएलडी), उन्नाव सीईटीपी (2.65 एमएलडी), मथुरा सीईटीपी (6.25 एमएलडी) और गोरखपुर सीईटीपी (7.5 एमएलडी) को मंजूरी दी गई है। इनमें से दो परियोजनाएं- मथुरा सीईटीपी (6.25 एमएलडी) और जजमऊ सीईटीपी (20 एमएलडी) पूरी हो चुकी हैं।
गंगा की मुख्य धारा वाले राज्यों और उसकी सहायक नदियों के तट पर परिचालित काफी अधिक प्रदूषणकारी उद्योगों (जीपीआई) की जांच साल 2017 से की जा रही है। इन प्रयासों के परिणामस्वरूप साल 2017 में 26 टन प्रतिदिन के हिसाब से साल 2022 में 13.73 टीडीपी बीओडी भार में कमी आई है और साल 2017 में 349 एमएलडी के हिसाब से साल 2022 में 249.31 एमएलडी तक लगभग 28.6 फीसदी प्रवाह निर्वहन में कमी आई है।
एनएमसीजी की ओर से गंगा और यमुना नदी पर नदी के जल की गुणवत्ता, सीवेज उपचार संयंत्र (एसटीपी) के प्रदर्शन आदि की निरंतर निगरानी के लिए एक ऑनलाइन डैशबोर्ड "प्रयाग" परिचालित किया गया है।
कुल 139 जिला गंगा समितियों का गठन किया गया है, जो नियमित रूप से 4एम (मंथली, मेंडेटेड, मिनट और मॉनिटर्ड) बैठकें आयोजित करती हैं। जून, 2024 तक 3,032 से अधिक बैठकें आयोजित की गई हैं।
चयनित जिला गंगा समितियों के समन्वय में रामगंगा बेसिन में चार जिलों- उत्तराखंड में उधम सिंह नगर, उत्तर प्रदेश में शाहजहांपुर, मुरादाबाद और बरेली जिला में लोगों को विकेंद्रीकृत योजना व नदी बेसिन प्रबंधन में बेहतर भागीदारी करने के लिए तैयार किया गया है।
आर्द्रभूमि के संरक्षण के लिए उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में 12.53 करोड़ रुपये की लागत से 4 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है।
एनएमसीजी द्वारा राज्य वन विभाग के जरिए गंगा नदी के मुख्य धारा के साथ एक वानिकी कार्यकलाप परियोजना लागू की गई है। इसमें लगभग 347 करोड़ रूपये के व्यय के साथ 31,494 हेक्टेयर क्षेत्र पर वनीकरण कार्य किया गया है।
केंद्रीय अंतर्देशीय मत्स्य अनुसंधान संस्थान (सीआईएफआरआई) की ओर से कार्यान्वित विशेष परियोजना के तहत मत्स्य जैव विविधता और नदी डॉल्फिन के प्रे बेस का संरक्षण करने और गंगा बेसिन में मछुआरों की आजीविका सुनिश्चित करने के लिए साल 2017 से कुल 105 लाख भारतीय मेजर कार्प (आईएमसी) फिंगरलिंग्स को गंगा में रखा गया है।
देहरादून स्थित भारतीय वन्य जीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) और राज्य वन विभाग के सहयोग से डॉल्फिन ऑर्ट्स, हिल्सा, कछुए और घड़ियाल जैसी जलीय प्रजातियों के लिए एक बचाव और पुनर्वास कार्यक्रम- विज्ञान आधारित प्रजाति पुनरूद्धार कार्यक्रम द्वारा डॉल्फिन ऑर्ट्स, हिल्सा, कछुओं और अन्य नदी प्रजातियों की आबादी में आई बढ़ोतरी जैव विविधता में उल्लेखनीय सुधार को दिखाता है।
उत्तर प्रदेश में गंगा कार्य बल (जीटीएफ) का गठन किया गया है, जिससे वह राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन को उसके अनिवार्य कार्यों जैसे कि- (क) मिट्टी के कटाव को रोकने के लिए वृक्षारोपण, (ख) जन जागरूकता/भागीदारी अभियानों का प्रबंधन, (ग) जैव विविधता सुरक्षा के लिए संवेदनशील नदी क्षेत्रों में गश्त लगाना और (घ) घाटों की गश्त आदि को पूरा करने में सहायता कर सके।
गंगादूत (45,000), गंगा प्रहरी (2900) और गंगा मित्र (700) का एक कैडर सार्वजनिक भागीदारी गतिविधियों में शामिल है।
गांगा नदी के पांच राज्यों के 4,507 चिन्हित गांवों में स्वतंत्र घरेलू शौचालयों का निर्माण कार्य पूरा हो चुका है। इन सभी गंगा तट के गांवो को अब खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) घोषित किया गया है। इसके अलावा अब तक गंगा नदी के 3,679 गांवों को ओडीएफ स्थिरता (ओडीएफ प्लस) घोषित किया गया है।
गंगा नदी की साफ सफाई और संरक्षण के प्रयासों में जनता के बीच जिम्मेदारी और जुड़ाव की भावना उत्पन्न करने के लिए व्यापक जन जागरूकता अभियान संचालित किए गए हैं। इनमें गंगा उत्सव, नदी उत्सव, नियमित सफाई व वृक्षारोपण अभियान, गंगा घाट पर योग और गंगा आरती शामिल हैं। इन प्रयासों को गंगा रक्षक के समर्पित कैडरों जैसे गंगा प्रहरी, गंगा विचार मंच और गंगा दूत आदि की ओर से भी सहायता प्रदान की जाती है।
केंद्रीय जल शक्ति राज्य मंत्री श्री राज भूषण चौधरी ने आज लोक सभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में यह जानकारी दी।
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